Thursday, December 25, 2008

सुनना है तो इसे सुनें..फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की गलियों के आवारा कुत्ते

आज कुछ अलग सा सुनाने को मन है,एक समय था जब जनवादी गीतों को गाने वाले ग्रुप बहुत थे,अगर वो कभी कैसेट या सीडी निकाल भी लेते तो सही तरह से डिस्ट्रीब्यूट कर नहीं पाते थे..और ज़्यादा लोग उसे सुन भी नहीं पाते थे।जब इलाहाबाद में था तब हमने बिगुल नाम से जनवादी गीतों का कैसेट रिलीज़ किया था पर आज वो हमारे पास नहीं है शायद इरफ़ानजी के पास हो कह नहीं सकता,उन गीतों की मिक्सिंग अच्छी नहीं हो पाई थी,शायद इसलिये भी उसे हम सहेज के रख नहीं पाये हों कारण चाहे जो हो,पर जनगीतों में बहुत से प्रयास अतीत में हुए तो हैं पर लोगों के सामने सही तरह से नहीं आ पाये हैं, पंजाब गुरूशरण सिंह के ग्रुप का जो भी गीत सुना मैने मैं तो मुरीद हो गया उनका....गज़ब का कोरस और खुली आवाज़ एक दम मन तक पहुँचते थे वो गीत, पर कैसेट कभी मिला नहीं.....किसी के पास हो तो हमें बताए ,पटना हिरावल के साथियों ने भी बहुत से गीत गाये हैं पर उन्हें भी बहुत से लोगों ने सुना नहीं है।दिल्ली में हमने एक्ट वन के बैनर तले एक कैसेट निकाला था "हमारे दौर में" उसका इन्ट्रो नसीरूद्दीन साहब ने किया था,संगीत पियूष मिश्रा ने दिया था वो कैसेट भी कहीं धूल खा रहा होगा...पर प्रयास बहुत अच्छा था।

अभी पिछले दिनों समकालीन जनमत पर मैने कुछ गीत सुने सुनकर लगा कि अभी भी कुछ लोग तो हैं जो अपने आस पास की दुनियाँ कैसी है चेताते रहते हैं,,मुक्तिबोध का "अंधेरे में " और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का "कुत्ते" मैने सुना सुनकर , मैने झटपट छाप लिया अपने मोबाइल में मैने डाउनलोड करके बहुतों को सुनाया, "अंधेरे में " को सुनकर मेरा ये हाल था कि मैं गेटवे ऑफ़ इंडिया की प्रोटेस्ट गेदरिंग में शामिल हुआ,कुछ दिनों पहले मेरे मित्र उदय जिनके साथ मैने लम्बे समय तक रंगकर्म किया था उनके साथ अंकुर भी था जिसे मैने गोद में खिलाया भी है अब बड़ा हो गया है,ग्रैफ़िक आर्टिस्ट बन गया है,उनको देखकर मेरा उत्साह जागा और मैने उन गीतों को उन्हे सुनवाया आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब मुझे ये पता चला कि इन गीतों में कला कम्यून के अंकुर, बंटू और उनक्ले साथियों ने आवाज़ दी है,जिन्हें मैं एक अरसे से जानता था,और ये बात मुझे पता नहीं थी अंकुर से पता चला कि इन रचनाओं की धुन संतोष झा ने दी है, तो आज आप जिस रचना को सुनने जा रहे हैं संगीत संतोष झा ने दिया है..ये रचना फ़ैज़ साहब की है।

कुत्ते

ये गलियों के आवारह बेकार कुत्ते
के बख्शा गया जिनको ज़ौक़-ऐ-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया उन का
जहाँ भर की दुत्कार उन की कमाई ।

न आराम शब् को न राहत सबेरे,
गलाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगडें तो एक दूसरे से लड़ा दो
ज़रा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो

ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फ़ाकों से उकता के मर जाने वाले
ये मज़लूम मख्लूक़ गर सर उठाएँ
तो इंसान सब सरकशी भूल जाए

ये चाहें तो दुनिया को अपना बनालें
ये आक़ाओं की हड्डियाँ तक चबा लें
कोई इन को अहसास-ऐ-ज़िल्लत दिखा दे
कोई इन की सोई हुई दुम हिला दे.

galiyon ke awaara kutte.mp3 - Ankur and mandali.....music by santosh jha

6 comments:

विधुल्लता said...

विमल भाई जी बेहद खुबसूरत ,फैज का ये गीत ,गायकी मैं भी गजब की तेजी के साथ एक सोच और लोच है ...पहले हम भी कुछ समय तक जनवादी विचार धारा के लोगों और ग्रुप के साथ जुड़े रहे फिर सब कुछ छूट गया..लेकिन गीत अभी भी अच्छे लागतें हैं...badhai

Smart Indian said...

गज़ब का गीत! आनंद आ गया!

Yunus Khan said...

बेहतरीन । अदभुत । मज़ा आ गया ।
ऐसे और गीत जमा कीजिए सरकार ।
फिर हम आते हैं बटोरने के लिए ।

इरफ़ान said...

Aap kaa andaz sahee hai. Mere paas Bigul hai, Gurusharan Singh ke gaane bhee hain aur Hamare Daur Mein(Act one)bhee. Sach to ye hai ki ab tak jaaree shaaayad saare janvaadee geet- aur unke cassette mere paas hain. Shayad iskee vajah ye bhee hogee ki kaee mein maine commentary kee hai.

Anonymous said...

कोई इन को अहसास-ऐ-ज़िल्लत दिखा दे
कोई इन की सोई हुई दुम हिला दे.

Bread pakora said...

बेहतरीन । अदभुत । मज़ा आ गया ।
ऐसे और गीत जमा कीजिए सरकार ।
फिर हम आते हैं बटोरने के लिए ।
Thanks for sharing this post very helpful
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