
आज भोजपुरी फिल्म का स्तर वाकई बहुत गिर गया है पर जब भोजपुरी फिल्म की शुरुआत हुई थी तब ऐसी स्थिति नहीं थी जो आज है, साठ के दशक में भोजपुरी में बनी पहली फिल्म "
"गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो"में कम से कम सामाजिक सरोकार तो दिखता था पर ये ज़रुर है कि कुछ अच्छी भोजपूरी फ़िल्म बनने की जो शुरुआत हुई थी जैसे "लागी नाही छूटे रामा" या "बिदेसिया" जैसी फ़िल्मों के बाद फ़िल्मों का स्तर निम्न स्तर का होता चला गया,उन पुरानी फ़िल्मों के गीतों को सुनना आज भी एक सुखद एहसास दे जाता है, आज भोजपूरी फिल्म का जो हाल है किसी से छुपा नहीं है, मनोज तिवारी जब फ़िल्म के हीरो नहीं बने थे तब का उनका गाया लोकगीत "असिये से कईके बी ए लईका हमार कम्पटीशन देता" पसन्द आया था ,पर आज भी इन पुरानों गीतों में अपनी की सी महक है जो भुलाए नहीं भूलती शुरुआती दौर ही मील का पत्थर सबित होगा ये किसी ने सोचा नहीं था,
आज वो गीत मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ," हे गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो.... ये गीत लता जी और उषा मंगेशकर की आवाज़ में है मधुर गीत शैलेन्द्र के लिखे हैं और संगीत चित्रगुप्त का है।
फ़िल्म है "गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ईबो" ।
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