अपने इस चिट्ठे पर मेरी कोशिश तो रहती है कि कुछ ऐसी चीज़ें परोसी जाँय जिसे लोगों ने कम सुना हो,जब मैने कैरेबियन चटनी पर पोस्ट लिखी थी तो अपने यहां के कैरेबियन चटनी को लेकर अलग अलग प्रतिक्रिया आई थी अनामदासजी ने लिखा था ......."इन गानों को सुनकर लगता है कि ऑर्गेनिक भारतीय संगीत, देसी संगीत सुनने के लिए अब कैरिबियन का सहारा लेना पड़ेगा, जहाँ भारतीय तरंग में बजते भारतीय साज हैं, और गायिकी में माटी की गंध है, सानू वाली बनावट नहीं है. मॉर्डन चटनी म्युज़िक में रॉक पॉप स्टाइल का संगीत सुनाई देता है, भारत में लोकसंगीत या तो बाज़ार के चक्कर के भोंडा हो चुका है या फिर उसमें भी लोकसंगीत के नाम पर ऑर्गेन और सिंथेसाइज़र, ड्रम,बॉन्गो बज रहे हैं.
तो अखिलेशजी की प्रतिक्रिया थी......."इसमें चटनी ही नहीं अचार भी है साथ ही साथ मिट्टी की हांडी में बनी दाल का सोंधा पन भी है...हां परोसने के तरीके में क्रॉकरी और स्टेन्लेस( संगीत) का बखूबी इस्तेमाल है, बेवतन लोगों में रचा बचा अस्तित्वबोध नये बिम्बों के साथ आधुनिक होता हुआ भी कहीं अतीत की यात्रा करता है। कहीं का होना या कहीं से होने के क्या मायने हैं इस संगीत से अयां हो रहा है।
पर मैं कहना चाहता हूँ कि आज भी अपने यहाँ ढूढें तो मन के तार झंकृत करने वाले लोक-गीतों भले कम हो गये हों पर आज लोग हैं कि उन्हें संजो कर रखे हुए हैं...
तो उसी कड़ी में कुछ लोकागीत लेकर आया हूँ जिसे हम दुर्लभ गीतों में शुमार कर सकते है, इन गीतों को भी किसी ने संजो के ही रखा होगा और आज मेरे पास न जाने कहां कहां से घूमता टहलता मेरे पेनड्राइव से होता हुआ आज ठुमरी तक पहुंचा है जिसे आप ज़रूर सुने और अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दे ।
नौटंकी शैली में ज़रा इस गाने को सुनें, जिसे आप पहले भी सुन चुके है जिसे लता जी ने गाया था फ़िल्म" मुझे जीने दो" में और पीछे से नक्कारे की किड़मिड़ गिम भी सुने जो इस गाने को और मोहक बना रहा है.....इस आवाज़ से मैं तो अंजान हूँ. पर आप ही सुने और कुछ बताएं।
बिरहा पर भी क्लिक करके एक संगीत के साईट पर बहुत से लोकगीतों से रूबरू हो सकते है।
यहां बिरहा में जिनकी आवाज़ है वो मेरे लिये अनाम है अगर आप मदद कर सकें तो अच्छा होगा।
रोपनी आज रोपनी पर जो लोकगीत गाये जाते है उन पर एक नज़र ...हमारे यहां तो हर मौसम के लिये लोकगीत बने है...मॉनसून आते ही खेतों में धान की रोपनी होती है और किसान अपने खेतों में रोपनी वाले गीत गाते गाते अपना काम करते है...
और कोहबर(विवाह के समय जहाँ कई प्रकार की लौकिक रीतियाँ होती हैं) का गीत गाती महिलायें, विवाह गीत तो आपने बहुत से सुने होंगे पर कोहबर पर विशेष इस गीत को सुनें,
12 comments:
बढ़िया लिंक है गाने सुन नहीं पा रहा हु
रोपनी और बिरहा सुनाकर मुग्ध कर दिया आपने । विस्मृत हो रही है यह सम्पदा । इनका स्मरण सुखकर है ।
कोहबर गीत सुन के मज़ा आ गया. आजमगढ़ की शादियाँ याद आ गई जिसमे मम्मी, बुआ और चाची लोग गाती थी. एकआध जनी ही उसमे सुर वाली होती थी बाकि लोग अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से गाती रहती थी लेकिन सारा मज़ा उस कोरस की आवाज़ का ही होता था. पापा को अभी सुनवाना है.
कोहबर गीत सुन के मज़ा आ गया. आजमगढ़ की शादियाँ याद आ गई जिसमे मम्मी, बुआ और चाची लोग गाती थी. एकआध जनी ही उसमे सुर वाली होती थी बाकि लोग अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से गाती रहती थी लेकिन सारा मज़ा उस कोरस की आवाज़ का ही होता था. पापा को अभी सुनवाना है.
नदी नारे न जाओ स्याम पैंयाँ पडूँ तो गुलाब जान का गीत कहा जाता है ....कोहबर के गीत भी बड़े मीठे लगते हैं ...आभार
आने वाले कल में शहरीकरण के चलते लोकगीत निश्चय ही समाप्त हो जाएंगे
नौटंकी और बिरहा ही सुन पाया अन्य दो खुल नही रहे हैं लेकिन यही मन मोह ले गया । इन गीतो की आवाज़ तो पहचान मे नही आ रही कवि पंकज राग ने गीतों पर बहुत काम किया है शायद वे बता सकें ।
बहुत बहुत धन्यवाद. कमाल कर दिया आपने, दिल खुश कर दिया. ढेर सारा आभार.
लोकगीतों से मैं कभी दो चार नहीं हुई हूँ। आपकी दी हुए गीतों को सुनती हूँ तो मालूम चलेगा मेरी इनमें दिलचस्पी पैदा होती है या नहीं।
Awesome!!!One correction though, nadi naare in 'Mujhe jeene do' is sung by Asha Bhonsle and not by Lataji.
विमल भाई बढिया खजाना है आपके पास |
रोपनी, बिरहा का नाम तो सूना था पर कभी ध्यान से सूना नहीं था , आपके सौजन्य से ये भी संभव हो गया |
हमारे लोक गीतों की परमपरा महँ है |
chinta karo nath ji........ ke gayak mashhur biraha samrat HIRA LAL YADAV hain.
Post a Comment