Saturday, July 14, 2007

याद रखना ज़रूरी है

क्‍या ग़ुलाम अली को हम भूल रहे हैं? क्‍या यह भूलना सही है? इस तरह आख़ि‍र हम क्‍या-क्‍या भूलते रहेंगे? मेंहदी हसन को भी इतिहास बना दिया है. जगजीत सिंह को रहने दीजिए, हालत तो यह हो गई है कि अब सुनने को सिर्फ़ हिमेश रेशमिया बचे हैं. क्‍या यह अच्‍छा है? क्‍या आनेवाले समय में हम सिर्फ़ रे‍शमिया जैसे लोगों को ही सुनते रहेंगे? क्‍या यह हमारे कानों और हमारी आत्‍माओं के हित में होगा? आप क्‍या सोचते हैं? और नहीं सोचते हैं तो सोचना शुरू कर दीजिए. संस्‍कृति का सवाल है आपको सोचना चाहिए. जब सब खत्‍म हो जाएगा तब सोचना शुरू कीजिएगा? अजीब आदमी हैं!

3 comments:

sanjay patel said...

विमल भाई...बाज़ार का कुचक्र संगीत , तहज़ीब और हमारी विरासत को लील कर ही छोडे़गा.जब तक नई पीढ़ी नुकसान का अहसास होगा तब तक तो सब कुछ समाप्त हो चुका होगा. आपको , हमको , हम सबको मिलकर अपनी नई पीढी़ से खूब बतियाना चाहिये अपने अतीत के बारे में.वे तो पकड़ में नहीं आने वाले लेकिन हमें उन्हे प्यार से इस ओर लाना होगा. मुझे थोड़ी बहुत जो भी समझ कविता,संगीत,साहित्य की मिली उसमें माता-पिता और दादाजी मी महत्व्पूर्ण भूमिका रही.हमारे आपके घरों में गाने बजाने के कितने सुरीले सिलसिले थे और शायद इसीलिये विपरीत समय में भी हम मनुष्य बने रहे.संगीत की ख़राबी और गुणी कलाकारों के विस्मरण हमें भी कटघरे में लेते हैं. हम अपनी अगली पीढी़ को वैसा क्वालिटी टाइम कहाँ दे पा रहे हैं जो हमारे अभिभावकों ने हमें दिया...बिगडे़ सुर हैं घर के...ज़माने की क्या बात करें.मै वर्ल्ड-स्पेस पर शास्त्रीय संगीत सुनता हूं / विविध भारती सुनता हूं लेकिन तब तक ही यह संभव हो पाता है जब तक बेटा-बेटी स्कूल में हैं...उनके आते ही.रेडियो मिर्ची,आइपाँड और वर्ल्ड स्पेस पर हिमेश भाई नमूदार हो जाते हैं ..मेंहदी हसन,मो.रफ़ी,जगजीत सिंह,ग़ुलाम अली और उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब सुबकते रहते हैं किसी कोने में और मै भी.

Yunus Khan said...

विमल जी नीचे कुछ लिंक दे रहा हूं पढियेगा । इसमें भी इसी मुद्दे पर बात की गई है । गुलाम अली तो पिछले हफ्ते मुंबई आये थे, क्‍या मजमा जुटा था उन्‍हें सुनने के लिए । अफ़सोस कि मेहदी हसन साहब लकवे की वजह से अब नहीं गा सकते ।
http://radiovani.blogspot.com/2007/06/00.html
http://radiovani.blogspot.com/2007/06/blog-post_11.html
http://radiovani.blogspot.com/2007/06/blog-post_1506.html

VIMAL VERMA said...

संजयजी आपके विचार को पढ कर और भी अच्छा लगा, हम आगे भी एक दूसरे को समझने की कोशिश करते रहेंगे और यूनुसजी,आप मेरे लिये नये नही हैं, आपके विचार और आपकी पसंद से मै वाकिफ़ हूं, आप दोनों का शुक्रिया.

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