Monday, September 3, 2007

बिक्रम घोष का तबला

भाई, फ़्युज़न संगीत के बारे में क्या सोंचते है?... मेरी तो इस विषय में यह राय है कि संगीत मे प्रयोग जितना भी हो कम है.. आखिर असली संगीत तो वही है जो आपके मन को भेद कर बात करे और एक ऐसे संसार में पहुचा दे जो आपकी कल्पना से परे हो... अपने यहां भी इस दिशा में काफ़ी काम हुआ है पर उसका बाज़ार बन नही पाया है.. फिर भी कुछ नाम अगर लिये जांयेंगे तो.. चाहे आनन्द शंकर हों, ज़ाकिर हुसैन हों या फिर रंजीत बारोट हों.. और भी बहुत से नाम है पर यहां मेरा मकसद नाम गिनवाने का नहीं है... ख़ैर, तो बात ये है, दोस्‍तो, कि कुछ नये मोती हैं... जिनकी दस्तक बहुत झन्नाटेदार है.. अब ये ज़रूर देखना है इनमें नया और क्या है? तो इन्‍हीं नये नामों में एक नाम है बंगाल के बिक्रम घोष का.. जिन्होने बहुत कम समय में देश के बाहर भी ख्याति अर्जित की है .

तो सोचना क्या है? बिक्रम घोष के बारे में सिर्फ़ इतना कि मूलत: तबलानवाज़ हैं लेकिन रचना जो है आपका मन तो मोह ही लेंगी! तो यहां टिपियाइए, और आनंद लीजिए तबले के तक-धिड़ाक का...

4 comments:

अजित वडनेरकर said...

धन्यवाद मित्र,
बिक्रम घोष की उंगलियों ने वह सुरीला संसार रच दिया जिसके एंद्रजालिक प्रभाव में मैं सितारों से भी आगे पहुंच गया था।
मज़ा आ गया। शुक्रिया एक बार फिर .....
कभी सितार पर फ्यूज़न या वेस्टर्नाइज म्यूजिक सुनवाइये न.. बरसों पहले बीबीसी पर एक रिकार्डिंग सुनी थी। मैं भारतीय शास्त्रीय संगीत के फ्यूजनिक प्रयोगों पर मुग्ध रहता हूं।

Udan Tashtari said...

वाह भाई, बहुत आभार,.

ajai said...

Mantramugdh ho gaya.

Nitin Bagla said...

विक्रम घोष का एक कार्यक्रम बहुत पहले एम. टी. वी. पर सुना था, तब से नेट पर उन्हे ढूंढ रहा था, आज आपने मिला दिया

धन्यवाद

:)

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