न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Sunday, September 23, 2007
बीते दिनो की बात और हलका हलका सुरुर नुसरत जी की कव्वाली !!!
आजकल क्रिकेट का सुरूर चल रहा है पर ये एक हवा की तरह आया है और उसी तरह चला जाएगा, पर ब्लॉग का सुरुर तो कमाल है, इन दिनो ब्लॉग का सुरूर है जो सर चढ़कर बोल रहा है, हर बार कुछ नया करने की चाहत से मन तो लबरेज़ रहता है ., क्या करें जब कुछ सोचता हूं ,तो लगता है कि मेरे लिखे अनुभव पर किसी को पड़ी ही क्या है, पर बार बार रोकने के बाद भी बीते कल की सुहानी यादें हमेशा घुमड़ कर पीछा करती रहती है,
जब इलाहाबाद या दिल्ली में था तो वहां महफ़िल अपने आप ही जम जाती थी ... साथ में संगीत के मुरीद लोग तो साथ थे ही.. वो चाहे अज़दकजी हो, चाहे हिन्दुस्तानी डायरी वाले अनिल सिह हो तो क्या निर्मल आनन्द वाले अभय तिवारी हों, या टूटी हुई बिखरी हुई वाले इरफ़ान हो या पहलू वाले चन्दू हो...या पंकज श्रीवास्तव हो साथियो के साथ अपनी मंडली दस्ताऔर जन संस्कृति मंच के साथ अनगिनत नाटको और गीतों के प्रदर्शन घूम घूम कर पूरे देश में करना, याद आता है.
दिल्ली की मंडली इससे अलग थी.. वहां भी हारमोनियम तबले से रात भर क्या धमा चौकड़ी मची रहती थी.. कितना मज़ा आता था... एक बार तो दिल्ली मे गज़ब हो गया, हमलोग तो वहां मंडी हाउस में एक्ट वन के लिये नाटक किया करते थे.हम नाटक करते करते कब गायन मंडली में तब्दील हो गये पता ही नही चला.. और बाद में कब हम कैसे सड़को पर उतर आये और देखते देखते हमने सिर्फ़ कोरस गीत तैयार किये और उसके देश भर में खूब सारे प्रदर्शन किये जो मैं तो कभी भूल ही नही सकता .
तब भाई पीयूष मिश्र, आशीष विद्यार्थी, मनोज बाजपेई, निर्मल पांडे, गजराज राव, भाई निखिल वर्मा, अनीश, अनुभव सिन्हा, गुड्डा, विजय बाबू ,अरविन्द बब्बल और हमारे निर्देशक एन के शर्मा,पत्रकार राजेश जोशी, पत्रकार अरूण पान्डे और भी बहुत से नाम थे .दिन भर तो हम साथ ही साथ रहते थे और रात में हारमोनियम के साथ जब बैठते थे तो समझ नही आता था कि इतनी जल्दी रात खत्म कैसे हो जाती थी पर अब ब्लॉग रूपी नई बयार ने हमें चारों तरफ़ से घेर लिया है अगर कहें तो बहुत अकेला भी कर दिया है कि ऑफ़िस करने बाद घर से निकलना भी तो नही चाहते..पर ये जो ब्लॉग की दुनिया जो है उसने भी बहुत सारे अजनबी मित्रों से मिलावाया है और धीरे धीरे ये अजनबियत भी गुम होती जा रही है.... हम मित्र बनने की ओर अग्रसर है...
इसी से आज आपके सामने नुसरत साहब कि कव्वाली पेश कर रहा हूं और जो भी ऊपर मैने लिखा वो चाहे आपको बुरा लगे या भला झेलिये और मुझे अपने नॉस्टेल्जिया में खो जाने दीजिये...तो आज की ये कव्वाली अपने दोस्तो को नज़र करता हूं तो गौर फ़रमाइयेगा... ये जो हल्का हल्का सुरूर है सुनिये और मज़ा लीजिये इस बेहतरीन कव्वाली का, तो पेश है !!!!
इस कव्वाली को सुनने के बाद अपनी प्रतिक्रिया अगर देना हो तो अवश्य दें !!!! इस कव्वाली के सुरूर को ब्लॉग से जोड़कर सुनियेगा तो शायद और मज़ा आये !!!!
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6 comments:
आपकी प्रस्तुति प्रशंसनीय है.
क्या बात है... मज़ा आ गया...
बहुत खूब प्रस्तुति विमल भाई. आपका भी अंदाज निराला है बात रखने का. बहुत आभार. आनन्द आ गया.
वाह बहुत ख़ूब.
वाह विमल भाई . आपकी ब्लेन ding भी खूब रही . कव्वाली को ब्लॉग से मिला दिया. तिस पर नॉस्टेल्जिया की धमक ?
bhai vah
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