कुछ दिनों पहले अजित भाई और भाई अनिल जी ने नया कुछ डालने को कहा था तो इस पर मैं इतना ही कहुंगा कि संगीत मे प्रयोग हमेशा मुझे अच्छे लगते रहे हैं, बहुत पहले आनन्द शंकर की रचनाएं सुनने में मज़ा आता था,पर धीरे धीरे वो मज़ा जाता रहा और अब उसकी जगह नॉस्टेल्जिया ने ले लिया है, अब सुनता हूं तो पुराना कुछ कुछ याद आता रहता है बस । पर कुछ संगीत रचनाएं ऐसी भी होती है जो धीरे धीरे पूरे वातावरण को और मोहक बना देते हैं तो अब ज़्यादा लिखना मुनासिब भी नही है, क्योकि सुनने के बाद ही कुछ बात की जाय तो अच्छा रहेगा, तो मन्द मन्द संगीत का आनन्द लें हां यहां ये बताना उचित होगा कि ये रचना पुरानी ज़रूर है पर एक समय गज़ब का जलवा था,पूरब और पश्चिंमी संगीत का मिलन का एक साथ मिलन तो देखिय्रे... मज़ा लीजिए.. सुनने के लिये दो तीर के बीच में दो चट्का लगाएं इस रचना में थोड़ी समस्या है.. खेद है आप ठीक से सुन नही पा रहे।
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5 comments:
विमल भाई संगीत कोई भी हो अच्छा ही होता है.बस तय इतना भर करना होता है कि हमारे कान का सुरीलापन कितना है. आपके इस फ़्यूज़न स्मरण में मेरी एक याद ये भी मिला लें जो पं रविशंकर और पं यहूदी मेन्युहिन के बीच इस्ट मीट्स वेस्ट जुडी़ हुई है. इसे यूँ तो फ़्यूज़न कहना ठीक नहीं होगा लेकिन ये दो जुदा पृष्ठभूमि से आए सर्वकालिक महान संगीतकारों की जुगलबंदी कहना ठीक होगा. इसमें तबला संगति उस्ताद अल्लारख्खा ख़ाँ साहबा की थी. एक तरफ़ पं.रविशंकर के मिजराब से छिड़ते तारों का जलवा और दूसरी तरफ़ तार सप्तक में झनझनाती पं मेनुहिन की वाँयलिन ...दिमाग़ से उतारे नहीं उतरती वह महफ़िल.आपने यादों के तार झनझना दिये विमल भैया.
बेहतरीन फ्यूजन । हमें भी आनंद शंकर का शौक़ था ।
लेकिन अब वो बुख़ार उतर गया । फ्यूजन का शौक़ अब भी बरक़रार है ।
दिल खुष हो गया
डाउनलोड लिंक दे दिजिये, हमारे पास यह चल नहीं रहा पता नहीं क्यूँ??
युनूस भाई और संजय भाई सुन चुके हैं वरना हम कह देते कि आपने ही गलत लगाया होगा. :)
आपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है।
रवीन्द्र प्रभात
सुन लिया। अच्छा है सुनाई दे रहा है। :)
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