Friday, November 16, 2007

भुपेन हज़ारिका और उनके जनोन्मुखी गीत !!!!

बात ८० के दशक की है , तब मैं आज़मगढ़ था, बम्बई जाने के लिये बनारस से ट्रेन पकड़नी थी, हमारे नाटक का प्रदर्शन मुम्बई में होना था, क्योकि बनारस से हमें महानगरी ट्रेन पकड़नी थीतो बनारस में थोड़ा दिन का समय गुज़ारना था, हमारी संस्था के भौमिकदा के जानने वाले किसी के घर हम लोग ठहरे थे मैं किसी को जानता भी नही था, बाहर के कमरे में मैं आराम कर रहा था कि अचानक एक मधुर आवाज़ ने मेरी तंद्रा को तोड़ दी, दूर से मेरे कान में एक आवाज़ के साथ कोरस भी सुनाई दे रहा था , गीत बंगला में था, पता करने पर पता चला कि जिस आवाज़ से मै इतना अभिभूत हूं वो आवाज़ तो रुमागुहा ठाकुरता की है और उनके बारे मे इतना कि वो गायक किशोर कुमार की पहली पत्नी थीं और अमित कुमार की मां....गीत था विस्तिर्ण नदो पारे अशंख मानुशे हाहाकार सुनी ओ गोंगा तुमी बोये छे केनो....पता चला कि कैल्कटा यूथ क्वायर नाम से ये कैसेट बाज़ार में उपलब्ध है, पर हम तो इस कैसेट को बनारस में तलाशते रहे बाद में मुम्बई और इलाहाबाद पर कही मिला नही,पर इसी बहाने भुपेन हज़ारिका को सुना, सुमन चटर्जी को सुना नोचिकेता को सुना ।

रुमागुहा की आवाज़ और उस गाने की धुन आज भी मै अपने अंदर बजता महसूस करता हूं, हां ये बात भी है कि कोलकाता से मेरे एक मित्र ने इस कैसेट को उपलब्ध कराया पर कुछ दिनो बाद कोई मित्र उस कैसेट को सुनने के लिये क्या ले गये आज तक वापस भी मिला , पर कसेट की वजह से पता चल पाया कि जिस गीत को इतना सुनने के लिये आतुर था उस गीत को भुपेन हज़ारिका का लिखा हुआ है और धीरे धीरे भूपेन दा को सुनने लगा , बाद में सुमन चट्टोपाध्याय का सुमनेर गान सुना और आनन्द आया ।

आज कुछ जीवनोन्मुखी गीतों के बारे में मै सोच रहा था कि आखिर हिन्दी में इस तरह के गीतों पर विशेष कुछ क्यों नहीं हो पाया जबकि बंगाल और आसाम आदि इलाकों में लोग पता नही कब से गा रहे हैं, वैसे अब आज के दौर में वाकई और कौन लोग गा रहे हैं ऐसे गीत, मुझे मालूम तो नही है, पर एक ज़माने में भुपेन हज़ारिका ने इस तरह के जन गीत खूब गाये है और लोगों ने उन्हें खूब सराहा भी पिछ्ले दिनो यूनुस जी ने भी भुपेन दा के गीत सुनाए थे ।
तो आज भुपेनदा की कुछ चुनी हुई रचनाएं आपके लिये ले कर आया हूं अगर बंगला ना आती हो तो किसी बंगाली जानने वाले से इसके अर्थ को समझने की कोशिश करियेगा.. वाकई इस तरह का प्रयोग हिन्दी में अगर हुआ हो तो आप सूचित ज़रूर करियेगा , तो सुनिये और सुनाइये भुपेन दा के वो रचनाएं जिनकी वजह से लोग भूपेन हज़ारिका को जानते हैं।

आज आपके सामने कुछ गीत पेश कर रहा हूं, जो भुपेन हज़ारिका, सुमन चट्टोपाध्याय, नचिकेता, अंजन दत्ता के गाये हुए हैं सभी गीत बंगला में हैं मै भी भाव तो समझ लेता हूं अज़दक की वजह से इन सारे गीतों को समझ पाया बंगला मुझे आती नहीं है. तो मुलाहिज़ा फ़रमाईये
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11 comments:

अफ़लातून said...

आजमगढ़ में फोटू खींचने वाले दत्ता भी आपके समूह में थे? हमारे दल के आजमगढ कार्यालय के उद्घाटन में उन्होंने राहुलजी का 'भागो मत,दुनिया को बदलो' गाया था-शंकरजी वाली तिरमुहानी के समीप।

VIMAL VERMA said...

अफ़लातून जी,
आपके याद दिलाने पर दत्ता याद आ गये बाप रे ८० की बात है, मेरी मुलाकात उसके बाद हो नही पाई, दत्ता उन दिनो समानांतर के सक्रीय सदस्य थे,पर दसियों साल हो गये मिले, याद दिलाने के लिये शुक्रिया.

Ashish Maharishi said...

तो आप आजमगढ़ में कहाँ रहा करते थे? मेरा भी जुडाव उसी शहर से है

Priyankar said...

कलकत्ता में रहने का एक फ़ायदा तो यह है ही कि आप स्वतः बहुसांस्कृतिक हो जाते हैं .

भूपेन हज़ारिका के न केवल बांग्ला/असमिया गीत सुनने को मिलते रहे वरन इनके हिंदी वर्ज़न भी खुद भूपेन दा की आवाज़ में उपलब्ध हैं .

'गंगा तुम बहती हो क्यों' तो लोकप्रिय है ही, एक बार स्कूल और कॉलेज़ की बच्चियों के समूह नृत्य की एक प्रतियोगिता में निर्णायक रहने का अनुभव तो और भी जोरदार रहा जिसमें कम से कम तीन समूहों ने भूपेन हज़ारिका के गाए चाय बागान की पृष्ठभूमि वाले गीत 'एक कली दो पत्तियां' पर बेहतरीन समूह-नृत्य प्रस्तुत किया .

Sanjeet Tripathi said...

भूपेन हजारिका के गाने सुनने पर ऐसे लगते है मानो आपके अंदर से ही प्रतिध्वनित हो रहे हों!!
आमी एक जाजाबोर = आवारा हूं….

खुश said...

विमलजी,
आपने मेरी ब्लाग में पहली टिप्पणी दर्ज की थी और कहा था कि लिखते रहिए। लिखना चल निकला है अब। धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए।

Yunus Khan said...

बहुत बढि़या है भाई । इस पोस्‍ट को बुकमार्क कर लिया गया है । ताकि जब मन हो हम भूपेन दा की आवाज सुन सकें ।

रवीन्द्र प्रभात said...

भूपेन हजारिका के स्वर को आत्मसात करना स्वर्ग सुख से कम नही होता ! बहुत बढि़या पोस्‍ट है भाई ।

VIMAL VERMA said...

सबको शुक्रिया,प्रियंकरजी, असल में कहना चाहता था की बंगला और असमी आदि भाषाओं में इस तरह के गीत रचे जा रहे है, पर हिन्दी में तो उनका अनुवाद ही आ पा रहा है जो मौलिक तो नही ही है....ऐसे गीत हिन्दी में कब गाए जाएँगे ,कब तक अनुवाद को हम प्रमुखता देते रहेंगे....खैर इस पर बहस होना ज़रूरी है जो अभी नहीं हो सकती कभी मौका मिला तो बात करेंगे, आप सभी ने ठुमरी पर आकर ठुमरी की शोभा बढ़ाई है शुक्रिया...

अफ़लातून said...

विमलजी जनमदिन पर हार्दिक शुभकामना ग्रहण करें।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Ganga Behtee ho Kyun - Ye GEET Pandit Narendra Sharma ki likha hua hai -

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