Thursday, April 10, 2008

मोरा संइयाँ मोसे बोले ना..शफ़क़त अमानत अली की आवाज़..

कभी अखबार से जुड़े पत्रकार मित्रों को खबर के लिये कितना कुछ करते देखा,पर अपना मन तो सुमड़ी में समाया पता नहीं क्या क्या चाहता है?बहुत दिनों से समय भी नहीं मिल पा रहा था कि कुछ मन की बात लिखूँ,पर मन भी तो है उड़न कबूतर की तरह यहाँ वहाँ उड़ता फ़िर रहा है पर काम का कुछ भी मामला लगता नहीं,
आज बहुत दिनों बाद कुछ फ़्युज़न संगीत सुनाने का दिल हो रहा है......पर कुछ कहने से पहले ये तो बता देना ही उचित है कि जब भी ब्लॉग पर कुछ लिखना चाहता हूँ हमेशा मैं अपने आपको अतॊत में झाँकता पाता हूँ, अब देखिये ना आज आपको पाकिस्तानी बैंड फ़्युज़न की कुछ रचनाएँ सुनाने का मन कर रहा था पर मन में पता नही क्या क्या चल रहा है.....ये फ़्युज़न का कन्फ़्युज़न भी गज़ब रंग दिखाता है..जैसे कुछ लोगों को सागर किनारे डूबते सूरज को देखना बहुत भाता है...रोज़ चले जाते हैं डूबते सूरज को देखने पर उनसे पूछा जाय कि भाई रोज़ रोज़ सूरज का डूबना देखना आपको क्यौ पसन्द है तो उसका जवाब देते बनता नही है कहेंगे अच्छा लगता है....लाल सूरज को इस तरह चकरघिन्नी की नाचते नाचते पानी में समाते देखना मन को भा जाता है..और भी जवाब हो सकते हैं पर जहाँ तक संगीत की बात है तो उसके बारे में ये ज़रूर कहना चाहुंगा कि पसन्द अपनी अपनी खयाल अपना अपना, मुझे भी संगीत में डूबे रहने में बड़ा मज़ा आता है अगर क्यौं आपने पूछ दिया तो मैं भी यही कहुंगा कि ’अच्छा लगता है",तो आज यही सोच के बैठा हूँ कि आपको एक बेहतरीन रचना सुनवानी है तो और कुछ सूझ भी नहीं रहा.
अपनी पसन्द की कोई चीज़ आप तक लाना और आपका सुनना, वो मुझे भी बहुत भाता है..पर इस बात का दर्द भी है मेरे भीतर है कि आज के समय में जहाँ तक संगीत की बात करूँ तो ऐसा कुछ भी सुनने को नहीं मिल रहा जो दिल तक जाकर बात करे, क्या आपको नहीं लगता कि आज के दौर में शब्द पर संगीत पर भारी पड़ रहा है,मिलोडी में सब कुछ खो सा गया है,कुछ धुने पसन्द भी आती हैं पर शब्द मुँह से फूटते ही नहीं, इस मामले में शायद कुछ गाने अपवाद हो सकते हैं पर आज कल संगीत का मौसम ठीक तो नहीं चल रहा,तो बात यहाँ से करे कि आज जो रचना आप सुनने वाले हैं उसे सुनवाने के लिये इधर उधर से कुछ लिंक भी जुगाड़ कर लिया है,

मोरा संइयाँ मोसे बोले ना.....मैं लाख जतन कर हार रही....इसकी धुन अहा अहा मज़ा आ जायेगा जब आप सुनेगे तो! इसे गाया है शफ़कत अली खान ने खमाज नामक ये रचना सागर अलबम से है,है थोड़ा पुराना, मतलब कोई आठ दस साल पुराना, पर इसकी तासीर ऐसी है कि मन को छू लेगी इसको मेरे मित्र जे।पी जो दिल्ली में रहते हैं पहली बार इस गीत को उनसे सुना था तभी मस्त हो गये थे,जे।पी भी इस गाने को बौत खूबसूरती से गाते हैं,कभी मौका मिला तो जे।पी की आवाज़ भी आप तक ज़रूर पहुँचेगी...पर अभी तो ये वीडियो देखिये और बताते जाइये कि कैसा लगा? वीडियो ज़रा पुराना है बफ़र करने में समय लेता है धैर्य रखियेगा। इस वीडियो को पहले देखा है तो बात नहीं,पर इस वीडियो को देखकर गुरुदत्त साहब की याद ज़रूर आती है।
आवाज़ है शफ़क़त अमानत अली की.


अगर सिर्फ़ ऑडियो भी ्सुनना चाहें तो यहाँ प्लेयर पर क्लिक करके सुना जा सकता है.

param>

6 comments:

Anonymous said...

Anand aa gaya !

अभिनव said...

वाह...

Neeraj Rohilla said...

बहुत खूब,
बार बार सुना, आनन्द आ गया ।

पारुल "पुखराज" said...

बहुत पसंद का गीत है मेरा--आभार सुनवाने का

Priyankar said...

सुबह से सात-आठ बार सुन चुका हूं . मन भरता ही नहीं .

Manish Kumar said...

ये गीत मुझे भी बेहद पसंद है। पिछली जुलाई में इसे चिट्ठे पर यहाँ
सुनाया भी था

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