हां मेरा मन भी गरियाने को कर रहा है....पर गरियाउँ किसे ? इन दिनो तो ब्लॉग जगत में फ़िर थोड़ी हलचल सी मची है...ब्लॉग जगत की साहित्य मंडली में बह्स छिड़ी हुई है,पर हम गाने बजाने वालों को इससे क्या ? इस पचड़े में जिन्हें पड़ना है पड़े...........ऐसी स्थिति में हम शुरू से वो वाले रहे हैं,लड़ाई झगड़ा माफ़ करो, कुते की लेंड़ी साफ़ करो......तो अब आप भी इसी उम्मीद में इधर आए होंगे कि गरियाने की बात कर रहा है ज़रूर किसी के समर्थन में बात कर रहा होगा चलो देखा जाय आज ठुमरी पर क्या है.?.तो मेरे मित्रों आज आपको मायूस भी नहीं करना चाहता ,मै तो बीच बीच में कुछ मनबहलाव के लिये कुछ गीत ग़ज़ल सुनवाने के मूड में ही रहता हूँ,
आज बहुत दिनों बाद उस्ताद राशिद खान साहब की पकी हुई आवाज़ में राग अहिर भैरव में एक रचना लेकर आया हूँ , इसे सुने....और बताएं कि चकल्लस, जो ब्लॉग जगत में मची हुई है इससे इतर ये रचना सुनकर आपके मन को सुकून पहूँचा की नहीं?
अलबेला साजन आयो रे........
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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12 comments:
तपती धरती पर बारिश की शीतल फुहार और मिट्टी की उठती सौंधी महक. वाह! मन को सुकून पहूँचा.
वाह वाह ! क्या बात है. एकदम मस्त कर दिया है. सुबह सुबह इस से अच्छा क्या हो सकता है. आप गरियाते रहें जिसे चाहें, हम तो फ़िट हो गया हूँ.
अच्छी बंदिश है जी, दोनो पहलवानो को पकड कर कुछ बर्बाद से गीत/ गजल जबरदस्ती सुनवाईये, शायद बात बन जाये :)
विमल भाई, गरियाना तो मैं भी बहुत सारों (स्पैलिंग मिस्टेक तो नहीं हो गई मुझसे?) को चाह रहा हूं पिछले कुछ दिनों से लेकिन ... सेम प्रॉब्लम.
इधर आप कुछ अनियमित होते जा रहे हैं अपनी पोस्ट्स के साथ. जल्दी-जल्दी कुछ न कुछ सुनाते रहें तो ऊपर के पैराग्राफ़ में ज़िक्र किये गये वांछित काम के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा. राशिद ख़ान को सुनवाने का शुक्रिया. उम्दा रचना, बहुत परिपक्व आवाज़.
bahut badhiya..
अरुण भाई से सहमत हूँ.
पर आपने तो मस्त कर दिया.
विमल जी
बहुत ही सुन्दर गीत सुनवाया है। गीत सुनकर एक अलौकिक आनन्द की प्राप्ति हुई है। ऐसा ही संगीत सुनवाते रहें। सस्नहे
आज के दिन बहुत सारी पोस्ट ऐसी हैं कि मन दुखी हो गया। आपने क्या बढ़िया बदलाव किया है इस माहौल में ! बहुत बहुत धन्यवाद।
घुघूती बासूती
भाई मैं तो इसलिए आया कि आप जरूर इससे कोई इतर बात ही कर रहें होंगे। :)भई हमने तो हिंदी ब्लॉग जगत में यही सीखा है कि बड़े लोगन की बड़ी बातो में ज्यादा माथा पच्ची करने की जरूरत नहीं। ये सब तो चलता ही रहेगा।
बहरहाल बड़ी पसंदीदा बंदिश सुनवाई आपने। शुक्रिया...
अछ्छा है....
राशिद भाई के स्वर वैभव के क्या कहने विमल भाई ! भारतीय उप-महाद्वीप में उनकी बलन का दूसरा कारीगर हाल-फ़िलहाल नज़र नहीं आता. क्या सुर की फ़ैंक है और क्या बेहतरीन बहलावा है बंदिश के साथ.जी चाहता है किसी दिन हम सारे राशिद-मुरीद कहीं एकत्र होकर सुबह से शाम ढलने तक इस बेजोड़ फ़नकार के सारे एलबम्स बाक़ायदा समय क्रम में सुनें....हाय अल्ला ! क्या कभी ऐसा हो सकेगा.
विमलजी
आपका ब्लॉग अच्छा लगता है
हर्षद जान्गला
एत्लानता युएसे
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