उस्ताद मुबारक अली खां साहब के नाम की तारीफ़ मेरे मित्र मयंक राय बहुत किया करते हैं, तो खोज खाज कर निकाल लाया हूँ आपके लिये.... तारीफ़ में बहुत कुछ कह जा सकता पर किसी की तारीफ़ में जो शब्द आप खर्च करे वो मैं आप लोगों से सुनना चाहता हूँ... तो इस रचना को सुनिये, आवाज़ है, पाकिस्तान के उस्ताद मुबारक अली खां साहब की.....आप ही बताइये सुन कर कैसा लगा. इस रचना को उस्ताद मुबारक अली खाँ साहब ने लाहौर के चित्रकार गैलरी के जलसे में कभी गाया था, उसी कि रिकार्डिंग है....
नैना मोरे तरस गए......
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|
पिछले दिनों नई उम्र के बच्चों के साथ Ambrosia theatre group की ऐक्टिंग की पाठशाला में ये समझ में आया कि आज की पीढ़ी के साथ भाषाई तौर प...

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जब से फेसबुक पर लोगों का आना जाना हुआ तब से मैं अपने ब्लॉग ठुमरी को समय ही नहीं दे पा रहा हूं परजबसे राजमोहन जी को सुना है तब...
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रंगरेज़ .....जी हां ....... अंतोन चेखव की कहानी पर आधारित नाटक है ... आज से तीस साल पहले पटना इप्टा के साथ काम करते हुये चेखव की कहा...
8 comments:
ऐसा घटिया आपका फोटो है? चेंज करो यार! kaam irafan se suni baatcheet se mel naheen khaataa!
मस्त है गुरू. बीच में एकाट्ठो और पकड में आए बाऊजी का, तो सुनवाएँ. मयंकजी को मेरी याद दिलाएँ.
गीत हमें उम्दा लगा. डूब कर सुना. कल सुबह फिर सुनेंगे यह तय है. आभार.
इसे कहते हैं ठुमरी का ठेठ सिक्सर ।
दिल खुश हो गया ।
बेहद शानदार अन्दाज़ है उस्ताद का. आनन्द की प्राप्ति हुई.
दरोगा जी की टिप्पणी पर सिर्फ़ इतना कि दारोगा बाबू ई फ़ोटो तुम्हारे लिये ही तो लगाए हैं, इतनी अच्छी रचना सुनने के बाद भी हमरी फ़ोटो पर तुम्हारी नज़र टिकी है...अरे किसी बहाने आओ पर आओ ज़रूर फ़ोटो देखकर जब मैं थक जाउंगा तभी हटेगी ये फ़ोटो....अरे जो हम संगीत चढाए हैं उस पर कुछ बोलेंगे दरोगा जी?....या फ़ोटो ही ताकते रहेंगे..
तसल्ली ठुमरी का स्थायी भाव है विमल भाई.क्या करें कहाँ से लाएँ तसल्ली.शरीर न सही मन तो भाग रहा है न...ऐसे में ये ठुमरी याद दिलाती है कि हमें अल्लाताला ने किस काम के लिये इस ज़मीन पर भेजा है. ज़रा ठहरें,सुनें,गुने और आवृत्तियों पर दाद देकर आनंदित हो जाएँ.अमीर ख़ाँ साहब ने ठुमरी नहीं गाई (ऐसा ज़माना जानता है लेकिन इन्दौर के शनि मंदिर में ख़ाँ साहब की गाई ठुमरी की रेकार्डिंग है)लेकिन वे मन ही मन में बड़े गुलाम अली ख़ाँ साहब की गायकी के क़ायल थे. ठुमरी शास्त्र की मर्यादा में कानों में महकने वाले मोगरे के इत्र का फ़ाया है.
बहुत बढिया -
शुक्रिया
- लावण्या
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