ये रचना उन्हें समर्पित है जिन्हें संगीत और सुर से परहेज है, जो संगीत की महत्ता को नकारते हैं, पर संगीत की ताक़त से अंजान हैं, तो पेश है .....उस्ताद अमानत अली खाँ और उस्ताद फ़तेह अली खाँ साहब.....की गायी ये रचना ।
उस्ताद अमानत अली खाँ-उस्ताद फ़तेह अली खाँ
प्यार नहीं है जिसका सुर से वो मूरख इंसान नही...........
प्यार नहीं है सुर से जिसको वो मूरख इंसान नहीं है,
जग मे गर संगीत न होता, कोई किसी का मीत न होता,
ये एहसान है, सात सुरों का, ये दुनियाँ वीरान नहीं,
सुर इंसान बना देता है, सुर रहमान मिला देता है,
सुर की आग में जलने वाले परवाने नादान नहीं।
न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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5 comments:
वाह विमल भाई वाह! बहुत सुन्दर रचना.
ख़ालिस मालकौंस में निबध्द (मन तरपत हरि दरशन को आज या अँखियन संग अँखियाँ याद कर लें )ये रचना कभी रात के नौ बजे बाद सुनियेगा और देखियेगा क्या कहर ढाती है ख़ाँ साहब की आवाज़ और ये बंदिश. ये सुरीला मोती बिखेरने के लिये आपको भी साधुवाद.
बहुत खूब.
सुनवाने का शुक्रिया हुजूर !
विमल भाई बहुत उम्दा काम ! मैं भी मुरीद हुआ आपका !
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