एक फ़िल्म मुझे जीने दो आई थी,उस फ़िल्म में सुनील दत्त साहब का रोबीला चेहरा और काला लिबास और माथे पर तिलक....घोड़े पर सवार सुनीलदत्त साहब का वो रूप आज भी मुझे याद है,इसी फ़िल्म में वहीदा रहमान ने भी काम किया था,फ़िल्म तो देखे ज़माना हो गया, कुछ भूली बिसरी यादें ही रह गईं हैं....पर गाने इस फ़िल्म के आज तक याद है...साहिर लुधियानवी के लिखे गीतों को संगीत में पिरोया था संगीतकार जयदेव ने...कमाल की धुने थी कि आज भी सुने तो मज़ा आता है...एक गाना था नदी नारे जाओ श्याम पईयाँ पड़ूँ, जिसे लता जी ने गाया था...एक गाना था अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है जिसे मो. रफ़ी साहब ने गाया था...एक गाना और था तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूँ.पर इसी फ़िल्म का एक और गीत जो आज मेरे हाथ लगा है वो है रात भी है कुछ भीगी भीगी......तो आज इसे सुना जाय और मज़ा लिया जाय..
सुनील दत्त साहब का वो चेहरा
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न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
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7 comments:
यह कह कर भी कि यह हिन्दी फिल्मों के मधुरतम गीतों में से एक है, मैं बहुत कम कह रहा हूं. इस गीत पर तो पूरी एक किताब लिखी जानी चाहिए. जितना खूबसूरत गीत है, फिल्मांकन भी उतना ही खूबसूरत है. वहीदा रहमान का नृत्य अद्भुत है.
जयदेव जी को हज़ारों सलाम!
बहुत खूबसूरत गीत है। संगीत, बोल और अदायगी सबकुछ अदभुत। अक्सर इसे सुना है लगातार,,दोबारा चला लिया है बार-बार सुनने के लिए। हां, पोस्ट का लिंक चला नहीं तो अपने पास से ही सुन रही हूं।
विमल जी
एक मीठा गीत सुनवाने के लिए धन्यवाद। बहुत प्यारा गीत है ये। बहुत दिनो बाद सुना। आशा है आगे भी सुनवाएँगें ऐसे ही मधुर गीत। धन्यवाद सहित
विमल जी, मैं आपको इस गीत का वीडियो भेजना चाह्ता हूं लेकिन आपका ई मेल पता नहीं मिल पा रहा है.
विमल भाई
इस बेहतरीन गीत को सुनवाने का आभार.
इतना सुन्दर गीत सुनवाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
बहुत ही मीठा प्यारा गीत सुनवाने के लिए धन्यवाद
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