बात बहुत पुरानी है, इतिहास में झांकियेगा तब पता चल ही जाएगा... समझिये ग्रामोफ़ोन भारत में आया ही था, उस ज़माने में कितनों के पास ग्रामोफ़ोन रहा होगा ? सन १९०० के आस पास की बात है, उस ज़माने में महिलाओं का घर से बाहर निकलाना कितना मुश्किल होता होगा, उस समय और शहरों की तो नहीं जानता पर इलाहाबाद, बनारस, आगरा, लखनऊ की तवायफ़ें ही बड़े नवाब और धन पशुओं और संगीत के मुरीदों का मनबहलाव करती थीं, ग्रामोफ़ोन जब भारत में आया तो उसकी रिकार्डिग तब कलकत्ते में हुआ करती थी, १९०२ के आस पास की कुछ रिकार्डिग तो आज भी महफ़ूज़ हैं और १९०६ के आस पास जानकी बाई और दूसरी गायिकाओं भी आज मौजूद है, हाँ स्तरीयता की दृष्टि से तो कुछ कह नहीं सकते पर ऐतिहासिक दृष्टि से उनको सुनना महत्वपूर्ण है,जानकी बाई, गौहर जान, मलका जान ऐसी बहुत सी गायिकाएं थी जिनकी रिकार्डिंग उस समय हुई थी, जानकी बाई (1875-1934)के चाहने वाले उन्हें "बुलबुल" उर्फ "छप्पन छुरी" भी बुलाते थे, कहते हैं एक चाहने वाले ने जानकी बाई पर 56 बार चाकू से हमला कर घायल कर दिया था तभी से उनको लोग "छप्पन छुरी" के नाम से पुकारते थे, जानकी बाई के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है बस इतना कि १९०० के आस पास जानकी बाई अपनी गा़यकी की वजह से बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थी, दादरा, ठुमरी, गजल, भजन ही नहीं बल्कि बल्कि एक शास्त्रीय गायिक़ा के रूप में उस ज़माने में प्रसिद्धि मिल चुकी थी, १९०२से १९०८ के आस पास की रिकार्डिंग जो मिलती है उनमें जानकी बाई का नाम आता है और कहते हैं उनके क्रेडिट में लगभग 150 रिकॉर्ड है.उस ज़माने में एक दिन की रिकार्डिंग का जानकी बाई ३००० रुपये लेती थीं,इससे ही ये अंदाज़ा लगता है कि जानकी बाई की शख्सियत कैसी रही होगी, आज उन्ही ग्रामोफोन रिकार्ड के कबाड़खाने से कुछ रचनाएं आपको समर्पित हैं | कुछ ग़लती हो गई हो तो क्षमा करेंगे |
रसीली तोरी अंखियाँ........ जानकी बाई की आवाज़
जानकी बाई की आवाज़ में इस रचना कों भी सुनें |
मलका जान की आवाज़ में ये रचना |
रसीली तोरी अंखियाँ........ जानकी बाई की आवाज़
जानकी बाई की आवाज़ में इस रचना कों भी सुनें |
मलका जान की आवाज़ में ये रचना |
2 comments:
अक्सर लोग भूल ही जाते हैं कि 56 का उपयोग केवल भोग के अर्थ में नहीं होता!
बेहतरीन..खूबसूरत !!
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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
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