Saturday, May 14, 2011

महान रंगद्रष्टा बादल सरकार को हमारी भाव भीनी श्रद्धांजलि !


बादल सरकार ( 1925- 2011)

अभी अभी पता चला कि बादल दा नहीं रहे .....बादल दा को हमारी श्रद्धांजलि... बादल दा से मेरी पहली मुलाकात ( सन १९८0-८1 ) में आज़मगढ़ शहर के एक रंग शिविर के दौरान हुई थी,मेरे लिये किसी भी रंगशिविर में शामिलहोने का यह पहला अवसर था या यूं कहे कि मैं पहली बार रगंमंच से जुड़ रहा था। तब तारसप्तक के कवि श्रीराम वर्मा, प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक,निर्देशक श्री अनिल भौमिक भी शहर की संस्था "समानान्तर" से जुड़े हुए थे, तब छोटे शहरों की नाटक मंडलियों में लड़कियों का अभाव रहता था ।नाटक की मंडलियां भी उतनी सक्रीय नही थीं , तब शहर और कस्बों में प्रोसीनियम रंगमंच ही ज़्यादा लोकप्रिय थे .....ऐसे समय में बादल दा ने रिचर्ड शेखनर और लोकनाट्य "जात्रा" से प्रभावित होकर "थर्ड थियेटर" शैली की परिकल्पना की , रगमंच के लिये ये दौर ही कुछ ऐसा था कि तब मनोशारीरिक रंगमंच, शारीरिक रंगंमंच,इन्टीमेट थियेटर और न जाने कितने तो प्रयोग हो रहे थे प्रोसिनीयम शैली के एक से एक लोकप्रिय नाटकों को लिखने के बाद अब दादा ने "तृतीय रगमंच"से अपना नाता जोड़ लिया था इसके लिये अलग से नाटक भी लिखे|

"भोमा""सपार्टकस"(निर्देशक अनिल भौमिक) "मानुषे मानुषे" "बासी खबर" बर्टोल्ट ब्रेख्त के नाटक " कॉकेशियन चॉक सर्किल" पर आधारित नाटक "घेरा"(निर्देशक अनिल भौमिक) बादल दा ने ये सारे नाटक विशेष तौर पर "तृतीय रगमंच" को ध्यान में रखकर लिखा,जिसमें चारों तरफ़ दर्शक के बीच में नाटक होता था दर्शक सबकुछ अपने सामने बहुत नज़दीक से देखता था उनके नाटक भी कुछ ऐसे थे जिसमें दर्शक भी एक पात्र होते थे उनका लिखा नाटक "मिछिल" जिसे हिन्दी में "जुलूस" नाम से खूब खेला गया, इस नाटक के हज़ारों प्रदर्शन हुए, अमोल पालेकर ने तो जुलूस के रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन किये थे, हर तरफ़ बादल दा के नाटकों का शोर था पर दादा को सिर्फ़ को उनके नाटय लेखन, तृतीय रगमंच या थर्ड थियेटर" फ़ॉर्म की वजह से ही नहीं याद किया जायेगा बादल सरकार के इस शैली की वजह से छोटे- छोटे कस्बों और शहरों में सैकड़ों नाटक की संस्थाओं ने जन्म लिया , यही दौर नुक्कड़ नाटकों का भी था, उस समय बिहार के आरा में "युवा नीति" पटना में "हिरावल" दिल्ली में "जन नाट्य मंच" और इलाहाबाद की "दस्ता" पटना की "इप्टा" अपने अपने इलाके में बहुत ज़्यादा सक्रीय थे।


आज़मगढ़ की "समानान्तर" लखनऊ की "लक्रीस" और इलाहाबद की संस्था "दस्ता" ने मिलकर अस्सी के दौर में "टुवर्डस दि इन्टरैक्शन" नाम से एक नाट्य समारोह का आयोजन हमने किया था जिसमें "लक्रीस" लखनऊ ने शशांक बहुगुणा के निर्देशन में खासकर मनोशारीरिक रगमंचीय शैली में गिरीश कर्नाड का "तुगलक" खेला गया था और बादल दा के लिखे नाटक बाकी इतिहास का मंचन हुआ था , कोलकाता से बादल दा अपनी संस्था " शताब्दी" और खरदा बंगाल से प्रबीर गुहा अपनी संस्था लिविंग थियेटर ग्रुप ने अपने नाटकों के इलाहाबाद, आज़मगढ और लखनऊ में सफ़ल प्रदर्शन किये थे तब बादल दा और उनकी पत्नी को हमने पहली बार "मानुषे -मानुषे" और "बासी खबर"में अभिनय करते देखा था |समानन्तर इलाहाबाद के निर्देशक श्री अनिल भौमिक उत्तर प्रदेश में " तृतीय रंगमंच" विधा को गम्भीरता से अपनाने के लिये जाने जाते हैं, उन्होंने लम्बे समय तक "थर्ड थियेटर" फार्म में अपने सारे नाटक निर्देशित किये है और अनिल दा का आज भी अनवरत ये सिलसिला ज़ारी है|

आज मेरे लिये वो सारे क्षण अविस्मरणीय और ऐतिहासिक से लग रहे है|बादल दा से सालों पहले दिल्ली के मंडी हाउस में मुलाकात हुई थी और यहीं मेरी दादा से आखिरी मुलाकात थी| 2008 15 जुलाई को उनके जन्म दिन की याद श्री अशोक भौमिक जी ने दिलाई थी और अशोकजी के सौजन्य से प्राप्त बादल दा के टेलीफोन नम्बर पर डायल करके मैने उनके दीर्घायु होने की दादा से कामना भी की थी, मैने अपने ब्लॉग पर दादा को याद करते हुए उनके बारे में लिखा भी था। पर उनके निधन की खबर ने मुझे बेचैन कर दिया और उनको याद करते करते जो कुछ फ्लैशेज़ आ रहे थे लिखता गया । महान रंगद्रष्टा बादल दादा को हमारी श्रद्धांजली । अभी पिछले दिनों श्री अशोक भौमिक जी ने उन पर एक किताब बादल सरकार व्यक्ति और रंगमंच प्रकाशित की थी |
थर्ड थियेटर शैली में इलाहाबाद विश्विविद्यालय के सीनेट हॉल में स्वर्गीय बादल सरकार का लिखा नाटक ’घेरा’ का ’दस्ता द्वारा मंचन

2 comments:

अभय तिवारी said...

आप को याद होगा बाद में हमने एक वर्क्शाप और की थी उनके साथ इलाहाबाद में, जिसमें हम और आप और दस्ता के बाक़ी साथी भी शामिल हुए थे। बहुत कुछ सीखा था दादा से.. मेरी श्रद्धांजलि!

स्वप्नदर्शी said...

श्रद्धांजलि!

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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