Monday, February 18, 2008

इन्हें रोज़ एक राखी सावन्त चाहिये.......

ब्लॉग जगत में भी धोनियों की कमी नहीं है,ऐसा मैं इसलिये लिख रहा हूँ कि वैसी ही स्थिति कमोबेश ब्लॉगजगत में भी आ गई है,अपनी कमी को छुपाते हुए बहस का रूख कहीं और कर देना। पर यहां ऐसे लोग खखार कर थूकने लगे हैं ये कभी सोचा ना था, सोचा था कि यहां सूकून होगा,पर इ ससुर के नाती किसी को चैन की सांस भी लेने नहीं देंगे, कोई किसी को दलित विरोधी बता कर बहस को गर्म करने के फ़िराक में है, तो कोई प्रगतिशीलता का चादर भर ओढ़े है और चीख चीख कर जताने की कोशिश में है कि वो प्रगतिशीलता को ओढ़ता बिछाता और उसी पर सोता है और उसी पर हगता मूतता है,किसको बता रहे है ये सब समझ में आता नहीं,और इन सारी कवायद के पीछे तथाकथित पत्रकार बंधुओं की संख्या ज़्यादा है, इनके दिमाग से जो इनके चैनल पर रोज़ दिखता है ये उसी सनसनी को ब्लॉग में भी आज़माने की कोशिश करते हैं, इन्हें रोज़ एक राखी सावन्त की ज़रूरत पड़ती है... अगर नहीं मिली तो किसी को भी राखी सावन्त समझकर झपट पड़ने की मंशा हमेशा बनी रहती है।

इन्ही की वजह से मुम्बई में राज ठाकरे राज ठाकरे बना......मतलब किसी भी बहस को अपनी ओर मोड़ने में ये किसी भी हद तक जा सकते है...... अगर बहस थोड़ी फ़ीकी पड़ रही हो तो किसी खौरहे कुत्ते की तरह भांति गुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र गुर्र्र्र्र्र्र गुर्राते रहेंगे अगर बात ना बनी तो तो बेनाम टिप्पणियों से उस मुद्दे को ज़िन्दा रखने की जुगत में लगे रहेंगे.....सामाजिक चिन्ता तो ऐसे ज़ाहिर करेंगे जैसे बस अब संन्यास लें लेंगे कि मानो जनता तो इन्हीं की राह देख रही हो... छटपटा रही हो, पर किसी को क्या मालूम, ये जो भी बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं उसका किसी जनता, किसी दलित या किसी आम आदमी से कोई लेना देना ही नहीं है... उल्टे उसकी मंशा है कि किसी भी तरह उसके ब्लॉग पर लोगों की आवाजाही बनी रहे.....बस.......! क्या इससे भी ज़्यादा कोई सोच सकता हो तो मुझे बताएं....

कुछ तो इसमें कलम के जगलर हैं इन्हें पहचानने की ज़रूरत है....जगलरी बुरी नहीं है पर उसकी दिशा? ज़रूर सही होनी चाहिये, अब आप कहेंगे कि ये कौन तय करेगा, तो मैं सिर्फ़ यही कहूंगा कि ये पाठक तय करेगा...क्योकि बिना पाठक के ब्लॉग का कोई महत्व नहीं है,और जो लोग हिट पाने के लिये ही इस खुराफ़ात में लगे है... तो उनसे मेरा कहना यही है कि बड़े दिनो बाद ब्लॉग की वजह हिन्दी में अच्छा पढ़ने और गुनने को मिल रहा है...उसको यूँ ही हवा में ना उड़ाएं, अभागे कुम्बले को देखिये सत्रह साल खेलने के बाद कप्तानी मिली,सबने सोचा था ऑस्ट्रेलिया में सब गोलमगोल हो जाएगा पर नियत का खेल देखिये, आज वहां से लौटकर उसकी गरिमा और बढी है पर धोनी साहब का जो हाल है पता ना पावें सीताराम,.. जब भारत लौटेंगे तो कितनी गरिमा रह जाएगी ये जब वो वापस आएंगे तो सबको पता चल जाएगा.......धोनी साहब को देखिये दिमाग दीपिका पर लगा है...पर बात वो देश के गौरव की करते हैं....वैसे ही अपने यहां ब्लॉग पर कुछ इससे अलहदा बात मुझे नज़र नहीं आती...किसी पर हंसना अच्छी बात है पर उसका मखौल बनाकर दल बना कर लिहो लिहो करना ये अच्छी बात नहीं है
तो आखिरी में किसी की एक लाइन कहकर बात समाप्त करता हूँ.....सूप त सूप चलनियों हंसे....जामें बहत्तर छेद ....

7 comments:

azdak said...

क्‍या विमल, फिर देखो छूटे बछड़े की तरह न केवल कूद रहे हो, बल्कि उल्‍टा-सीधा मुंह भी खोल रहे हो! ज़्यादा उल्‍टा ही खोल रहे हो! आजू-बाजू पहले कुछ पहलवान खड़े किये हैं कि नहीं? न बुढ़ाइल देह में ताक़त है न शब्‍दों में शब्‍दबेधी मार.. अबंहिये घेरा जाओगे तो कौन दिशा भागोगे, इसका पहले विचार, स्‍ट्रेटेजी तैयार रखी है? सुबह नाश्‍ता किये थे? और दोपहर में लंच? न किये हो तो पहले उसे कर लो? क्‍योंकि आगे लात और जूता खाते ज़्यादा दिख रहे हो, लंच के चांसेज़ कम लग रहे हैं! सीधे मुन्‍नी बेगम का कोई गाना नहीं चढ़ा सकते थे? या राखी सावंत का ठुमका? इस कुकुरहांव के बीच तुम ठुमरी रचाओगे?

Avinash Das said...

बहस में आपका स्‍वागत है।

अनिल रघुराज said...

विमल जी, सही बात कह रहे हैं। लेकिन जब सनसनी ही बिकती है तो धंधेबाज तो यही करेंगे। ये अलग बात है कि उनको ये नहीं समझ में आता कि ब्लॉग कोई धंधे की जगह नहीं है।

VIMAL VERMA said...

अनिलजी सनसनी की भी ऐसी तैसी हो गई है,लोकप्रियता क्रम में वो पाँचवें स्थान पर ही है,जान कर हैरान होंगे कि खबरिया चैनल पर पिछले हफ़्ते लोकप्रियता क्रम में पहले स्थान पर "खली की खलबली" है.....ये यहाँ भी कुश्ती लड़ना चाहते हैं।प्रमोदभाई,इसी कुकुरहांव में तो ठुमरी रचाने का अलग ही मज़ा है।अविनाशजी,आपका भी स्वागत है.....

Vikash said...

आप भी लग गये???
सही है, थोड़ा मजा और आयेगा. :)

Ashish Maharishi said...

इंसानी स्‍वभाव को आप कैसे बदल सकते हैं, आपकी भी जय जय हमारी भी जय जय, यही हो रहा

Tarun said...

विमल जी, क्या घूमा के मारा है ये कहीं से भी ठुमरी तो नही लगती। आज पहली बार आना हुआ इहाँ अब ठुमरी देखने आते रहेंगे।

आज की पीढ़ी के अभिनेताओं को हिन्दी बारहखड़ी को समझना और याद रखना बहुत जरुरी है.|

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