न शास्त्रीय टप्पा.. न बेमतलब का गोल-गप्पा.. थोड़ी सामाजिक बयार.. थोड़ी संगीत की बहार.. आईये दोस्तो, है रंगमंच तैयार..
Tuesday, February 19, 2008
मेकाल हसन बैण्ड..... सुनेंगे तो मुरीद हो ही जाएंगे....
ब्लॉग पर पतनशीलता पर कुछ उच्च कोटि के अनुभव, मित्र लोग ढूंढ कर ला रहे हैं, अब बहस के बीच संगीत से मन को
हल्का करें इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ..तो इसी बात पर आपके लिये लाया हूँ मेकाल हसन बैण्ड की दो रचनाएं ।
साथियों,मन की बात तो ये है कि जब मन अनमनाया हो तो मन को हल्का करने में संगीत की भूमिका बड़ी होती है...तो आज कुछ रचनाएं सुनिये और सुनाइये, मेरी पसन्द की दो रचनाएं सुने,ये दोनो रचनाएं . SAMPOORAN अलबम से हैं।
पहली रचना सम्पूरन (SAMPOORAN).......संगीत की हारमनी अद्भुत तो है ही....धीमें धींमें बाँसुरी की धुन समां को
बाँध कर रख देती है...और फिर जो माहौल बनता है उसे आप सुन कर ही आनन्द ले पायेंगे तो सुनिये...
दूसरी रचना दरबारी है.... कुछ यार मन बयां बयां.... ज़रा इसे सुने तो दुबारा सुने रह ना पायेंगे..
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10 comments:
Vimal ji Shandar
मधुर !!
ज़ानदार.शानदार.
गजब ,विमलजी
vaah.....mun khush ho gayaa
इस एल्बम सभी रचनाएं अच्छी हैं. मुझे "रब्बा" बहुत पसंद है. और जो "या अली" की live रेकॉर्डिंग है. और हाँ, आप ने बिल्कुल सही कहा, "दरबारी" को जितनी बार सुनें, मज़ा जैसे बढ़ता जाता है.
जो सबने कहा है उन सबको मिला दीजिए, उससे जो बनता है वह मैं कह रहा हूं.
धन्यवाद.
ghar jaake sunenge tabhi kuch keh paayenge.
grrrrrrrrr....yahooo...yum ...yum...mazedaar!
क्या कहने....मस्त है...
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