Friday, September 7, 2007

उस्ताद मेहदी हसन साहब को सुनते हुए!!!!


मेहदी हसन साहब का ज़िक्र आते ही ना जाने कितनी ग़ज़लों के टुकडे़ मेरे ज़ेहन में गुनगुनाते लगते हैं, ना जाने क्या याद आने लगते हैं .पर अब काफ़ी दिनों से मेंहदी साहब गा नही रहे.. कहते है लकवा मार गया उन्हें. पर यहां तो हम अपाहिज़ हुए जा रहे है उन्हें सुने बगैर.....अब जब उन्होने गाना छोड़ दिया है.. पर हमारी यादों में तो वो हमेशा बने रहेंगे... .अरे अब उनकी क्या बात करें, अब तो अच्छी गज़ल और अच्छी आवाज़ सुनने को मन तरसता ही रहता है क्योकि एक समय था जब पूरे बाज़ार पर इन्हीं लोगो का ज़ोर था पर अब धीरे धीरे समय के साथ साथ बहुत कुछ बदल गया है पर आज भी उन्हें सुनने वालों की कमी नही है, .

मेहदी साहब ने हर किस्म की ग़ज़लें गाईं हैं जिन्हें सुनकर हम हमेशा मुत्तासिर होते रहेंगे.. ...यहां मेंहदी साहब की चन्द ग़ज़लें पेश हैं ....तो पहली गज़ल मुलाहेज़ा फ़रमाएं.. बोल हैं: देख तो दिल की जां से उठता है..



मेंहदी साहब का अंदाज़ तो देखिये...




मोहब्बत करने वाले कम ना होंगे.. इसका तो जवाब नहीं





8 comments:

Yunus Khan said...

कितना अच्‍छा संयोग है ।
मैंने इसी हफ्ते मेहदी हसन की एक सीडी खरीदी है ।
जिसमें उनके गीत और गजलें हैं । पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं इसे सुनकर ।
तेरी आंखों को जब देखा, कंवल कहने को जी चाहा,
अच्‍छी बात करो,
भीगी हुई आंखों का काजल
मुहब्‍बत करने वाले कम ना होंगे

लंबी फेहरिस्‍त है । क्‍या क्‍या बताएं । हम तो सुन के निहाल हुए जा रहे हैं ।

उस पर आपने ये गजल सुनवा दी । तो समझिये सोने पर सुहागा हो गया ।

Udan Tashtari said...

जिन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा---


कितनी सच बात है इस जादुगर के लिये यह!!!

आवाज की कशिश-विचार मात्र से पूरी गजल गुँजने लगती है कान में.

आभार आपका इस प्रस्तुति के लिये.

Arvind Mishra said...

शुक्रिया मेरी एक शाम यादगार बानाने के लिए ! मेहंदी हसन साहब चिरंजीवी हों.

अभय तिवारी said...

क्या बात है..

sanjay patel said...

विमल भाई क्यों दिल के ज़ख़्मों को कुरेदते हैं आप.उस्ताद मेहदी हसन साहब तो ग़ज़ल का मंगलाचरण हैं.तीर्थ हैं....क़ाबा-काशी हैं.वे सामने हों या न हों उनकी आवाज़ कुदरत की सदा बन कर हमे पाक़ साफ़ कर देती है. बताती है क्या होती है मौसीक़ी...और जगाती है ये अहसास कि इस दुनिया के इंसानों इसे कहते हैं सुर...और कविता.सच कहूँ ...जैसे आजकल एक्सचेंज स्कीम चलती है इलेक्ट्रानिक अपलांसेस की दुकानों में...पुरानी वाँशिंग मशीन ले लो और नयी ले जाओ...दिल कहता है अल्लाताला से कहूँ मेरा ये शरीर ले ले...और इसके बदले मेहदी हसन साहब को तरोताज़ा कर दे...काश ऐसा हो सकता...

रवीन्द्र प्रभात said...

इसमें कोई संदेह नहीं कि उम्दा हैं उस्ताद मेहदी हसन साहब की गजलें.क्या बात है..
उपरवाला ऐसी प्रतिभा विरले को ही देता है. आपकी प्रस्तुति प्रशंसनिए है. बधाईयाँ ....../

Voice Artist Vikas Shukla विकासवाणी यूट्यूब चॅनल said...

विमलभाई,
मेंहदी साहब के तो हम भी दीवाने है. उनकी गायी हुवी गजलों और गीतोका बहुत बडा कलेक्शन जमाया है और अब तो नेटपरसे भी बहुत सारी गजले और गीत डाउनलोड कर रहे है. खुदा उन्हे लंबी उम्र दे.

Rajesh Pandey said...

जिंदगी में कभी कभी ऐसा ऐसा मुकाम आता है की शब्दों की कमी पड़ने लगती है, हसन साहब के बारे में जब भी कुछ लिखना चाहता हूँ मेरे साथ ऐसा होता है,

तू फरिस्ता है, तू ही हूर है ना,
तुझको देखा, खुदा को देख लिया,
तुझमे ऐसा नूर है ना.....

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